माँ,

मुझे लगता है कि मैं सब कुछ खो बैठी हूँ। मेरे अंदर जो कुछ अच्छा था, सब खो गया। पहले मैं हमेशा यह अनुभव करती थी कि मैं जो कुछ करती हूँ, वह आपके लिए है, मैं जो कोई काम करती थी उसमें  ‘आपके लिए करने का भाव  ‘; हमेशा मेरे साथ रहता था।

अब मुझे लगता है कि मैं इस भाव को खो चुकी हूँ।

मेरी प्यारी बच्ची,

क्या तुम इस परिवर्तन के किसी कारण को जानती हो ? निश्चय ही कोई कारण है; और फिर, आजकल जब कि आश्रम दर्शकों से भरा है, बहुत अस्तव्यस्तता रहती है जो प्रायः चेतना को धूमिल कर देती है। तुम्हें इससे बहुत ज़्यादा परेशान न होना चाहिये। केवल शांति और अध्यवसाय के साथ प्रकाश के फिर से आने की अभीप्सा करो। मेरा प्रेम हमेशा तुम्हारे साथ है जो इस बुरे समय को पार करने में तुम्हारी मदद करेगा।

सस्नेह ।

संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)

शेयर कीजिये

नए आलेख

केवल सत्य

तुम जिस चरित्र-दोष की बात कहते हो वह सर्वसामान्य है और मानव प्रकृति में प्रायः सर्वत्र…

% दिन पहले

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले