अगर तुम बीमार पड़ते हो तो तुम्हारी बीमारी की इतनी व्याकुलता और भय से देख-रेख की जाती है, तुम्हारी इतनी परिचर्या की जाती है कि तुम उस एकमेव से सहायता लेना भूल जाते हो जो तुम्हारी सहायता कर सकता है और तुम एक कुचक्र में पड़ जाते हो और अपनी बीमारी में एक अस्वस्थ रुचि लेने लगते हो ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…