बच्चो की शरारत


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ कक्षा लेते हुए

बच्चों को यह समझ कर शरारत छोडनी चाहिये कि शरारती होना शर्म की बात है, न कि सजा के डर से।

पहली अवस्था में, वह सचमुच उन्नति करता है ।

दूसरी में, वह मानव चेतना में एक पग और नीचे उतार जाता है, क्योंकि भय चेतना का अध: पतन है ।

संदर्भ : शिक्षा के ऊपर 


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