बच्चों के साथ व्यवहार


श्रीअरविंद आश्रम की श्री माँ

बालक जब उत्साह से भरा हो तो उस पर कभी पानी न फेरो। उससे कभी यह न कहो, ”देखो, जीवन इस प्रकार का नहीं है। ” बल्कि तुम्हें उसको उत्साहित करना चाहिये, उससे कहना चाहिये, ”हां, अभी तो चीज़ें बेशक उस प्रकार की नहीं है, वे कुरूप प्रतीत होती हैं, परंतु इनके पीछे एक सौंदर्य है जो अपने-आपको प्रकट करने का प्रयत्न कर रहा है। उसी के लिये प्रेम पैदा करो, उसी को आकर्षित करो। उसी को अपने सपनों ओर महत्वाकांक्षाओं का विषय बनाओ ।

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५७-१९५८


0 Comments