” जब मैं ‘अज्ञान’ में सोया पड़ा था,
तो मैं एक ऐसे ध्यान-कक्ष में पहुंचा
जो साधू-संतों से भरा था |
मुझे उनकी संगति उबाऊ लगी और
स्थान एक बंदीगृह प्रतीत हुआ;
जब मैं जगा तो
भगवान् मुझे एक बंदीगृह में ले गये
और उसे ध्यान-मंदिर
और अपने मिलन-स्थल में बदल दिया | ”
संदर्भ: कारावास की कहानी
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