प्रार्थना


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

हे प्रभो, तेरे प्रकाश की पूर्णता के लिए हम तेरा आवाहन करते हैं। हमारे अन्दर वह शक्ति जगा जो तुझे प्रकट करे।

सत्ता में सब कुछ मरुभूमि के शव-कक्ष की तरह मूक है: लेकिन छाया के हृदय में नीरवता के वक्ष में ऐसा दीपक जल रहा है जिसे कभी बुझाया नहीं जा सकता और जल रही है तुझे जानने और पूर्णतया तुझे जीने की तीव्र अभीप्सा।

दिनों के बाद रातें आती हैं, अथक रूप से नयी उषाएं पिछली उषाओं के बाद आती हैं, लेकिन हमेशा सुगन्धित ज्वाला ऊपर उठती रहती है जिसे कोई आंधी-तूफान कंपा नहीं सकता। वह ऊंची और ऊंची उठती जाती है और एक दिन अभी तक बन्द तिजोरी तक जा पहुंचती है, वह हमारे ऐक्य का विरोध करने वाला अन्तिम अवरोध है। ज्वाला इतनी शुद्ध, इतनी सीधी, इतनी गर्वीली है कि अवरोध अचानक लुप्त हो जाता है।

तब तू अपनी समस्त भव्यता में, अपनी अनन्त महिमा की चौंधियाने वाली शक्ति में प्रकट होता है; तेरे सम्पर्क में ज्वाला ऐसे प्रकाश-स्तम्भ में बदल जाती है जो हमेशा के लिए छायाओं को मार भगाता है। और महामन्त्र उछल पड़ता है जो परम अन्तःप्रकाश है।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 


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