प्रार्थना


हे समस्त वरदानों के परम वितरक, तुझे, जो इस जीवन को शुद्ध, सुन्दर और शुभ बना कर उसे औचित्य प्रदान करता है, तुझे, हे हमारी नियति के स्वामी, हमारी अभीप्साओं के लक्ष्य, इस नये वर्ष का पहला क्षण समर्पित था।

कृपा कर कि इस समर्पण के कारण यह पूरी तरह से महिमान्वित हो; जो तुझे पाने की आशा करते हैं, वे तुझे ठीक मार्ग से ढूँढ़े; कृपा कर कि जो तुझे ढूँढ़ते हैं वे तुझे पा लें और जो यह जाने बिना कष्ट पाते हैं कि
सच्चा उपचार कहाँ है वे यह अनुभव करें कि तेरा जीवन थोड़ा-थोड़ा करके उनकी अँधेरी चेतना की कठोर पपड़ी को छेदता जा रहा है।

मैं प्रगाढ़ भक्ति और असीम कृतज्ञता के साथ तेरी हितकारी भव्यताओं के आगे प्रणत हूँ। पृथ्वी की ओर से मैं तुझे अपने-आपको प्रकट करने के लिए धन्यवाद देती हूँ। मैं उसकी ओर से तुझ से याचना करती हूँ कि
तू अपने-आपको ‘प्रकाश’ और ‘प्रेम’ की अबाध वृद्धि में अधिकाधिक
अभिव्यक्त कर।

हमारे विचारों, हमारे भावों, हमारे कर्मों का प्रभुसत्तासम्पन्न स्वामी हो जा।
तू ही हमारी सत्ता की यथार्थता, एकमात्र ‘सद्वस्तु’ है।
तेरे बिना सब कुछ मिथ्या और भ्रम है, सब कुछ दुःखपूर्ण अन्धकार है।

तेरे अन्दर ही है जीवन, ज्योति और आनन्द। तेरे ही अन्दर है परम शान्ति।

संदर्भ : प्रार्थना और ध्यान 


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