मनुष्यों की सहायता करो, परंतु उन्हें अपनी शक्ति से वंचित कर अकिंचन न बनाओ; मनुष्यों को मार्गदर्शन और शिक्षण दो, परंतु ध्यान रखो कि उनकी पहलशक्ति और मौलिकता अक्षुण्ण बनी रहें; दूसरों को अपने में समाहित करो परंतु बदलें में उन्हें उनकी अपनी प्रकृति का पूरा ईश्वरत्व प्रदान करो। जो ऐसा कर सकता है वह नेता और गुरु है।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१६)
"आध्यात्मिक जीवन की तैयारी करने के लिए किस प्रारम्भिक गुण का विकास करना चाहिये?" इसे…
शुद्धि मुक्ति की शर्त है। समस्त शुद्धीकरण एक छुटकारा है, एक उद्धार है; क्योंकि यह…
मैं मन में श्रीअरविंद के प्रकाश को कैसे ग्रहण कर सकता हूँ ? अगर तुम…
...पूजा भक्तिमार्ग का प्रथम पग मात्र है। जहां बाह्य पुजा आंतरिक आराधना में परिवर्तित हो…