मनुष्यों की सहायता करो, परंतु उन्हें अपनी शक्ति से वंचित कर अकिंचन न बनाओ; मनुष्यों को मार्गदर्शन और शिक्षण दो, परंतु ध्यान रखो कि उनकी पहलशक्ति और मौलिकता अक्षुण्ण बनी रहें; दूसरों को अपने में समाहित करो परंतु बदलें में उन्हें उनकी अपनी प्रकृति का पूरा ईश्वरत्व प्रदान करो। जो ऐसा कर सकता है वह नेता और गुरु है।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१६)
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