हमारी असमर्थता के भाव ने ही अंधकार का अन्वेषण किया है। वास्तव में ‘प्रकाश’ के सिवाय और कुछ नहीं हैं। यह तो बेचारी मानव दृष्टि के सीमित क्षेत्र की वजह से वह बस प्रकाश को या तो ऊपर या नीचे ही देख पाती है।
यह मत सोचो की प्रकाश का सर्जन ‘सूर्यों’ से होता है। ‘सूर्य’ केवल प्रकाश के भौतिक घनीभूत केंद्र हैं, लेकिन वे हमारे लिए जो भव्यता फैलाते हैं वह सहजात और सर्वत्र होती है।
भगवान सब जगह हैं और जहाँ-जहाँ भगवान है वहाँ वहाँ प्रकाश है। ज्ञान चैतन्य जयोतिब्रह्मम ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
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अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…