जो मनुष्य पसंदगी और नापसंदगी से, कामनाओं-वासनाओं से, और अपनी अभिरुचियों से एकदम ऊपर उठ गया है, वही प्रत्येक चीज की ओर पूर्ण निष्पक्षता के साथ देख सकता है, उसकी इंद्रियों की विशुद्ध रूप से वस्तुनिष्ठ दृष्टि पूर्णता प्राप्त मशीन की तरह बन जाती है जिसके ज्ञान के साथ सजीव चेतना की उज्ज्वलता जुड़ी हो।
सन्दर्भ : शिक्षा के ऊपर
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