परम प्रभु के लिये पाप का अस्तित्व ही नहीं है – सभी दोष सच्ची अभिप्सा और रूपांतर द्वारा मिटाए जा सकते हैं।
तुम जिस चीज़ का अनुभव करते हो वह तुम्हारी आत्मा की अभीप्सा है जो भगवान को जानना और उनमें जीना चाहती है ।
धैर्य धरो, ज़्यादा से ज़्यादा निष्कपट बनो और तुम्हारी विजय होगी।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
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