ठीक करना और मिटाना, दोनों सम्भव हैं लेकिन दोनों हालतों में, यद्यपि अलग-अलग मात्रा में, स्वभाव और चरित्र के रूपान्तर की जरूरत होती है । अपने कर्म के परिणामों को बदलने की आशा करने से पहले जो चीज गलत तरह से की गयी है उसे पहले अपने अन्दर बदलना चाहिये ।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग – ३)
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