श्रीअरविंद थे परम करुणामय। वे पशु-पक्षियों तक की सुविधा-असुविधा का ध्यान रखते थे। कभी-कभी एक बिल्ली आकार आराम से उस कुर्सी पर सो जाती थी जिस पर बैठकर वे शिष्यों तथा अतिथियों से भेट-वार्ता करते थे। निश्चित समय पर श्रीअरविंद पधारते। बिल्ली को सोया देखकर वे स्वयं कुर्सी के एक किनारे पर सिकुड़कर बैठ जाते और बिल्ली को सोने देते।
भोर में जब श्रीअरविंद स्नांगृह में होते थे तब पूजालाल उनका कक्ष साफ करते थे। एक बार श्रीअरविंद ने पूजालाल से कहलवाया कि कक्ष साफ करते समय वे द्वार न हिलाएँ क्योंकि एक चिड़िया ने द्वार पर बसेरा कर लिया था। जितने दिन चिड़िया वहाँ रही द्वार नहीं हिलाया गया ।
संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला
... मैं सभी वस्तुओं में प्रवेश करती हूँ, प्रत्येक परमाणु के हृदय में निवास करते…
यदि तुम घोर परिश्रम न करो तो तुम्हें ऊर्जा नहीं मिलती, क्योंकि उस स्थिति में…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
उनके लिये कुछ भी मुश्किल नहीं है जो भगवान को सच्चाई के साथ पुकारते हैं…