केवल ईश्वर के ही प्रभाव से प्रभावित होना, और किसी के प्रभाव को स्वीकार न करना – यही पवित्रता है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र (भाग -२)
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिसमें…
मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
श्रीअरविंद हमसे कहते हैं कि सभी परिस्थितियों में प्रेम को विकीरत करते रहना ही देवत्व…