हमारी प्रकृति भ्रांति तथा क्रिया की बेचैन अनिवार्यता के आधार पर कार्य करती है, भगवान अथाह निश्चलता में मुक्त रूप से कार्य करते हैं। यदि आत्मा पर इस निम्न प्रकृति की पकड़ को रद्द करना है तो हमें प्रशांति के उस अगाध तल में छलाँग लगानी होगी और वही बन जाना होगा।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -२०)
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