निम्न प्रकृति तथा इसकी बाधाओं पर अधिक सोच-विचार करना भूल है क्योंकि यह साधना का नकारात्मक पहलू है। उन पर नजर रखनी चाहिये और उनकी शुद्धि करनी चाहिये, किन्तु उन्हें बहुत महत्त्व देकर उनमें ध्यानमग्न रहने से कोई मदद नहीं मिलती। चेतना के अवतरण की अनुभूति का सकारात्मक पक्ष अधिक महत्त्वपूर्ण वस्तु है। यदि व्यक्ति सकारात्मक अनुभूति का आवाहन करने से पूर्व निम्न प्रकृति के सम्पूर्ण और स्थायी रूप से शुद्धीकरण की प्रतीक्षा करता है तो सम्भवतः उसे हमेशा के लिए प्रतीक्षा करनी पड़ जाये। यह सच है कि जितनी अधिक निम्न प्रकृति शुद्ध होगी उतना ही उच्चतर प्रकृति का अवतरण आसान होगा। परन्तु यह भी सच है, बल्कि अधिक सच है कि उच्चतर प्रकृति का जितना अधिक अवतरण होगा, निम्न प्रकृति का उतना ही अधिक शुद्धीकरण होगा। न तो पूर्ण शुद्धीकरण और न स्थायी तथा पूर्ण अभिव्यक्ति एकदम तुरन्त आ सकती हैं। यह समय तथा धैर्य के साथ प्रगति की बात है। ये दोनों (शुद्धीकरण तथा अभिव्यक्ति) साथ-साथ प्रगति करते रहते हैं तथा
एक दूसरे के हाथों में क्रीड़ा करने के लिए अधिकाधिक समर्थ बनते जाते हैं यही साधना की सामान्य प्रक्रिया है।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…