गृह-सामग्री में और भी चीजें थीं: एक नहाने की बाल्टी, पानी रखने को एक टीन की नलाकार बाल्टी और दो जेल के कम्बल। स्नान की बाल्टी आँगन में रखी रहती, वहीं नहाता था। पहले हमारे भाग्य में पानी का कष्ट नहीं था पर बाद में यह भी भोगना पड़ा। पहले पास के गोहालघर (गोशाला) के कैदी नहाते समय मेरी इच्छानुसार बाल्टी में पानी भर देते थे, इसीलिए नहाने का समय ही था जेल की तपस्या के बीच प्रतिदिन गृहस्थ की विलासवृत्ति और सुखप्रियता को तृप्त करने का अवसर। दूसरे आसामियों के भाग्य में इतना भी नहीं जुटा था; एक बाल्टी पानी से ही उन्हें शौच, बर्तन-मजाई, स्नान सब करना होता था। विचाराधीन कैदी थे इसीलिए इतना-सा विलास भी मिला हुआ था, कैदियों को तो दो-चार कटोरे पानी में ही स्नान करना पड़ता था। अँगरेज़ कहते हैं कि भगवत्-प्रेम व शरीर की स्वच्छन्दता प्रायः समान और दुर्लभ सद्गुण हैं, जेलों में यह व्यवस्था इस प्रवाद की यथार्थता को सिद्ध
करने के लिए है या अतिरिक्त स्नान के सुख से कैदियों के अनिच्छा-जनित तपस्या के रस-भंग होने के भय से यह व्यवस्था प्रचलित की गयी है, यह निर्णय करना कठिन है। आसामी अधिकारियों की इस दया को काक-स्नान कह खिल्ली उड़ाते थे । मनुष्यमात्र ही है असंतोषप्रिय ।
संदर्भ : कारावास की कहानी
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