आध्यात्मिक भाव पूजा, भक्ति और निवेदन के धार्मिक भाव के विपरीत नहीं है, धर्म में जो गलत है वह मन की कट्टरता जो किसी एक सूत्र को एकांतिक सत्य मान कर उससे चिपकी रहती है। तुम्हें हमेशा यह याद रखना चाहिए कि सूत्र केवल सत्य की मानसिक अभिव्यक्ति होते हैं और इस सत्य को हमेशा बहुत-से दूसरे तरीकों से भी अभिव्यक्त किया जा सकता है।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
0 Comments