दो तरह के वातावरण


श्रीअरविंद और श्रीमाँ की समाधि

आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें अनुभूति पाने की कुछ क्षमता हो, बाहर से यहाँ आते हैं तब वे यहाँ के वातावरण की गभीर अचञ्चलता तथा शान्ति का अनुभव पाकर भौचक्के रह जाते हैं, बाद में जब साधकों से उनका मेल-जोल हो जाता है तब बहुत बार उनकी धारणा और वह प्रभाव धुंधला-सा पड़ जाता है, क्योंकि बहुधा साधकों के वातावरण की उदासी या चञ्चलता के वे शिकार हो जाते हैं। हाँ, अगर वे श्रीमाँ के प्रति उद्घाटित रहें-जैसा कि
उन्हें होना चाहिये-तब वे उसी अचञ्चलता तथा शान्ति में रहेंगे, उदासी या चञ्चलता उन्हें छू तक न पायेगी।

संदर्भ : श्रीअरविंद अपने विषय में 


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