किसी भी तरह के हतोत्साह को अपने ऊपर हावी मत होने दो और ‘भागवत कृपा’ पर कभी अविश्वास न करो। तुम्हारे बाहर, तुम्हारे चारों ओर जो भी कठिनाइयाँ हैं, तुमहारें अंदर जो भी कठिनाइयाँ हैं, अगर तुम अपनी श्रद्धा और अपनी अभीप्सा पर कसी हुई पकड़ बनाये रखो, ‘गुप्त’ शक्ति तुम्हें तुम्हारी कठिनाइयों से पार निकाल कर तुम्हें यहाँ वापिस ले आयेगी। भले तुम विरोधों और कठिनाइयों के बोझ तले तब जाओ, भले तुम ठोकरों पर ठोकरों खाओ, यहाँ तक कि सामने अंधी गली जान पड़े, लेकिन अपनी अभीप्सा की पकड़ को कभी ढीला न छोड़ो, अगर कभी श्रद्धा पर बादल घिर आयें, अपने मन और हृदय में हमेशा हमारी ओर मुड जाओ और वे बादल तितर-बितर हो जायेंगे।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…