श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

दूसरें लोग आईना है

जब कोई बात दूसरे व्यक्ति के अन्दर तुम्हें एकदम अवांछनीय या हास्यास्पद प्रतीत हो — जब तुम सोचो : ”यह कैसी बात है! वह तो वैसा है, वह उस तरह का आचरण करता है, वह ऐसी बातें कहता है, वह ऐसा करता है” –, तब तुम्हें अपने-आपसे कहना चाहिये : ”हां, हां, परन्तु मै भी शायद बिना. जाने वही चीज करता हूँ। अच्छा हो कि में दूसरे व्यक्ति की आलोचना करने से पहले सर्वप्रथम स्वयं अपने अन्दर दृष्टि डालूं ताकि मैं नि:संदिग्ध हो सकूं कि मैं भी मात्र थोड़े-से अन्तर के साथ, वही चीज नहीं करता।” और , जब-जब तुम्हें दूसरे व्यक्ति का आचरण बुरा लगे तब-तब यदि तुम इसे सामान्य बुद्धि ओर समझदारी के साथ कर सको तो तुम देखोगे कि जीवन में दूसरों के साथ का सम्बन्ध मानों एक आईना है जो हमारे सामने इसलिये रखा गया है कि हम अधिक आसानी से और अधिक सूक्ष्म दृष्टि से उस दुर्बलता को देख सकें जिसे हम अपने अन्दर वहन करते है ।

संदर्भ : विचार और सूत्र के प्रसंग में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

अपने चरित्र को बदलने का प्रयास करना

सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…

% दिन पहले

भारत की ज़रूरत

भारत को, विशेष रूप से अभी इस क्षण, जिसकी ज़रूरत है वह है आक्रामक सदगुण,…

% दिन पहले

प्रेम और स्नेह की प्यास

प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…

% दिन पहले

एक ही शक्ति

माताजी और मैं दो रूपों में एक ही 'शक्ति' का प्रतिनिधित्व करते हैं - अतः…

% दिन पहले

पत्थर की शक्ति

पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…

% दिन पहले

विश्वास रखो

माताजी,  मैं आपको स्पष्ट रूप से बता दूँ कि में कब खुश नहीं रहती; जब…

% दिन पहले