दूर रह कर सहायता ग्रहण करना

अगर वह दूर से सहायता ग्रहण नहीं कर सकता तो यहाँ रह कर योग जारी रखने की आशा कैसे कर सकता है? यह ऐसा योग है जो मौखिक निर्देशों या किसी बाहरी चीज़ पर नहीं बल्कि निर्भर करता है पूर्ण नीरवता में स्वयं को उद्घाटित करने और शक्ति तथा प्रभाव को ग्रहण करने पर। जो लोग दूर रह कर इसे ग्रहण नहीं कर सकते वे यहाँ भी उसे प्राप्त नहीं कर सकते। साथ ही, अपने अंदर निश्चलता, निष्कपटता, नीरवता, धीरज तथा लगन को प्रतिष्ठापित किए बिना यह योग नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें बहुत-से कठिनाइयों का सामना करना होता है और उन पर पूरी तरह से और निश्चित रूप से विजय पाने में कई-कई वर्ष लग जाते हैं।

संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र अपने और आश्रम के विषय में 

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले