अगर वह दूर से सहायता ग्रहण नहीं कर सकता तो यहाँ रह कर योग जारी रखने की आशा कैसे कर सकता है? यह ऐसा योग है जो मौखिक निर्देशों या किसी बाहरी चीज़ पर नहीं बल्कि निर्भर करता है पूर्ण नीरवता में स्वयं को उद्घाटित करने और शक्ति तथा प्रभाव को ग्रहण करने पर। जो लोग दूर रह कर इसे ग्रहण नहीं कर सकते वे यहाँ भी उसे प्राप्त नहीं कर सकते। साथ ही, अपने अंदर निश्चलता, निष्कपटता, नीरवता, धीरज तथा लगन को प्रतिष्ठापित किए बिना यह योग नहीं किया जा सकता, क्योंकि इसमें बहुत-से कठिनाइयों का सामना करना होता है और उन पर पूरी तरह से और निश्चित रूप से विजय पाने में कई-कई वर्ष लग जाते हैं।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र अपने और आश्रम के विषय में
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मनुष्य-जीवन के अधिकांश भाग की कृत्रिमता ही उसकी अनेक बुद्धमूल व्याधियों का कारण है, वह…
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