चुनाव करना


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

हर एक के जीवन में एक ऐसा क्षण आता है जब उसे दिव्य मार्ग और अव्यवस्था के बीच चुनाव करना होता है। तुम एक पांव यहां और एक वहां नहीं रख सकते। अगर तुम यह करने की कोशिश करोगे तो तुम्हारे चिथड़े बन जायेंगे।

जो हृदय चुनाव नहीं करता वह ऐसा हृदय है जो मृत्यु को प्राप्त होगा।

जीवन सत्य और मिथ्यात्व के बीच, प्रकाश और अन्धकार, प्रगति और अवनति, ऊंचाइयों की ओर आरोहण या रसातल में पतन के बीच निरन्तर चुनाव है। हर एक आजादी से चुन सकता है।

पहले आती है बौद्धिक वृत्ति और अभ्यास थोड़ा-थोड़ा करके बाद में आता है। जो चीज बहुत महत्त्वपूर्ण है वह है, जिसे तुम सत्य समझते हो उसे जीने और वही होने के संकल्प को बहुत जाग्रत् बनाये रखना। तब रुकना असम्भव होगा और पीछे गिरना तो और भी असम्भव।

 

सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)


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