तेरे आनन्द से अब हर दृष्टि है अमर :
मेरी आत्मा सम्मोहित नयनों से करने आयी है दर्शनः
फट गया एक आवरण और अब वे नहीं चूक सकते
तेरे विश्व-प्राकट्य का चमत्करण।
अन्तर-दर्शन के आनन्द में गृहीत
हर नैसर्गिक पदार्थ है तेरा ही एक अंश,
एक प्रहर्ष-प्रतीक तेरे सार से संस्कारित,
एक कविता सौन्दर्य के जीवन्त हृदय में आकृत,
रंग और रूपांकन की एक उत्कृष्ट कलाकृति,
विभव के पंखों पर समारूढ़ एक महत् माधुर्यः ।
अत्यन्त अवर वस्तुओं में भी स्वयं को करता उद्घाटित
अर्थपूर्ण सरणी का एक भारग्रस्त आश्चर्य।
सारे रूप हैं हर्ष की तेरी स्वप्न-बोलियों के प्रकार,
ओ परम पूर्ण, ओ अनन्त विशदाकार।
अनुवाद : अमृता
भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…
अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…
मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…