प्रकृति के जिस दिव्यीकरण की बात हम कर रहे हैं वह पूरी तरह से काया-पलट है – न केवल किसी तरह की अतिमानवता में विकास है बल्कि अज्ञानी प्रकृति के मिथ्यात्व का भागवत-प्रकृति में पूर्ण बदलाव है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…