प्रकृति के जिस दिव्यीकरण की बात हम कर रहे हैं वह पूरी तरह से काया-पलट है – न केवल किसी तरह की अतिमानवता में विकास है बल्कि अज्ञानी प्रकृति के मिथ्यात्व का भागवत-प्रकृति में पूर्ण बदलाव है ।

संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड-१२)

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