आपने कहा है कि गलत गति का दमन करने से वह बस दब जाती है, यदि उसे पूरी तरह निकालना हो तो उसे एकदम त्यागना चाहिये । तब फिर क्रोध, काम , भय आदि का दमन करने से क्या लाभ ?

अगर तुम्हारा त्याग सफल न हो तो दमन करना चाहिये। दमन कम-से-कम प्राणिक आवेगों का दास बनाने से बचाता है। एक बार नियंत्रण हो जाये तो सफलतापूर्वक अस्वीकार करना आसान हो जाता है । नियंत्रण के अभाव से सफल त्याग नहीं आता ।

संदर्भ : योग के तत्व 

शेयर कीजिये

नए आलेख

भगवान के दो रूप

... हमारे कहने का यह अभिप्राय है कि संग्राम और विनाश ही जीवन के अथ…

% दिन पहले

भगवान की बातें

जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…

% दिन पहले

शांति के साथ

हमारा मार्ग बहुत लम्बा है और यह अनिवार्य है कि अपने-आपसे पग-पग पर यह पूछे…

% दिन पहले

यथार्थ साधन

भौतिक जगत में, हमें जो स्थान पाना है उसके अनुसार हमारे जीवन और कार्य के…

% दिन पहले

कौन योग्य, कौन अयोग्य

‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…

% दिन पहले

सच्चा आराम

सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…

% दिन पहले