हृदय में शांति और मन में प्रकाश से भरपूर, हे प्रभु, हम तुझे अपने अंदर ऐसा सजीव महसूस करते हैं कि हम सब घटनाओं के प्रति प्रसन्नता तथा समता अनुभव करते हैं। हम जानते हैं कि तेरा पथ सर्वत्र है क्योंकि हम इसे अपनी सत्ताके अंदर धारण किये हुए हैं। हम यह भी जानते है कि सब परिस्थितियों में हम तेरे संदेश के वाहक और तेरे कार्य के सेवक बन सकते हैं।
एक स्थिर और पवित्र भक्तिभाव के साथ हम तेरे आगे नतमस्तक होते है और तुझे अपनी सत्ताके एकमात्र सत्यके रूपमें अंगीकार करते हैं।
सन्दर्भ : प्रार्थना और ध्यान
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…