अपनी मान्यता को साथ रखो यदि तुमको यह लगता हो कि वह तुम्हारें जीवन के निर्माण में सहायक है ; पर समझ लो कि यह सिर्फ एक मान्यता है तथा दूसरी मान्यताएँ भी इतनी ही अच्छी और यथार्थ है जितनी कि तुम्हारी।
संदर्भ : माताजी का एजेंडा (भाग-१)
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…