तुम इस समय यहाँ, यानी, धरती पर इसलिए हो क्योंकि एक समय तुमने यह चुनाव किया था – अब तुम्हें इसकी याद नहीं है, पर मैं जानती हूँ – इसी कारण तुम यहाँ हो। हाँ, तुम्हें इस कार्य की ऊँचाई तक उठना चाहिये, तुम्हें प्रयास करना चाहिये , तुम्हें सभी कमज़ोरियों और सीमाओं को जीतना चाहिये : और सबसे बढ़ कर तुम्हें अपने अहंकार से कहना चाहिये : “तुम्हारा समय बीत गया।” हम एक ऐसी जाति चाहते हैं जिसमें अहंकार न हो, जिसमें अहंकार की जगह भागवत चेतना हो। हम यही चाहते है : एक भागवत चेतना जो जाती को विकसित होने और अतिमानस सत्ता को जन्म लेने दे।
संदर्भ : पथ पर
जो अपने हृदय के अन्दर सुनना जानता है उससे सारी सृष्टि भगवान् की बातें करती…
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य? सभी तो उसी एक दिव्य…
सच्चा आराम आन्तरिक जीवन में होता है, जिसके आधार में होती है शांति, नीरवता तथा…