भागवत शक्ति को ग्रहण करने की क्षमता प्राप्त करने तथा तुम्हारे माध्यम से बाह्य जीवन की चीजों में इसे क्रियाशील होने देने के लिए तीन आवश्यक शर्तें हैं :
१) अचंचलता, समता — जो कुछ घटित होता है उससे विक्षुब्ध नहीं होना, मन को निष्क्रिय तथा दृढ़ बनाये रखना, शक्तियों की क्रीड़ा को देखना, किन्तु स्वयं प्रशान्त बने रहना।
२) परम निष्ठा — यह विश्वास बनाये रखना कि वही घटित होगा जिसमें सब का कल्याण है। किन्तु यह भी कि यदि व्यक्ति अपने को सच्चा यन्त्र बना सके तब परिणाम को भागवत प्रकाश द्वारा निर्देशित व्यक्ति का संकल्प ‘‘कर्तव्यं कर्म’’ के रूप में देखेगा।
३) भागवत शक्ति को ग्रहण करने की क्षमता तथा भागवत उपस्थिति तथा इसमें श्रीमाँ की उपस्थिति को महसूस करना तथा इसे अपनी दृष्टि, संकल्प व क्रिया को निर्देशित करने देना। यदि इस शक्ति तथा उपस्थिति को अनुभव किया जा सके और इस सुनम्यता को क्रियाशील चेतना की आदत बनाया जा सके तब अन्तिम परिणाम सुनिश्चित है। परन्तु सुनम्यता केवल भागवत शक्ति के प्रति होनी चाहिये जिसमें कोई विदेशी तत्व न हो।
संदर्भ : योग के आधार
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