एक तरु रेतीले सर-तीर
बढ़ाये अपने लंबे डाल
अंगुलियों से ऊपर की ओर
चाहता छूना गगन विशाल ।
किन्तु पायेंगे क्या वे स्वर्ग
प्रणय-रस जिनका भू में मूल,
विश्व-सुषमाओं पर हम मुग्ध
सकेंगे कैसे इनको भूल।
सखे! यह मानव-आत्मा दिव्य
गात और मानस जिनको, शोक !
लुभाती जगती-छवि, मेरे
रहे स्वर्गिक विचार को रोक ।
संदर्भ : श्रीअरविंद की कविता ‘A Tree’ का अनुवाद
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