दस वर्ष का चेला बहुत शरारती था। एक बार उसने आश्रम की क्रीड़ाभूमि में एक छोटी बालिका के हाथ से उसकी गेंद छिनने की कोशिश की। बालिका अपने गेंद नहीं देना चाहती थी, अतः दौड़कर सीड़ियों पर चढ़ गई। चेला ने उसे ज़बरदस्ती घसीटा तो वह गिर पड़ीं और उसकी बाँह टूट गयी। चारों ओर शोर मच गया।
उस समय श्रीमाँ क्रीड़ाभूमि में ही थी। उन्हें सूचित किया गया। उन्होंने पहले बच्ची को प्यार से सहलाया और शांत किया। फिर चेला से सारी घटना सच-सच बताने को कहा। चेला ने सब कुछ सच्चाई से बता दिया। श्रीमाँ ने चेला की निष्कपटता को सराहा और उसकी माता से कहा कि चेला ने सच बोलने का साहस किया है, अतः उसे डाँटे नहीं।
वे सदैव कहती थीं यदि कोई बच्चा अपना अपराध स्वीकार कर ले तो उसे क्षमा कर देना चाहिये।
(यह कथा मुझे स्वर्गीया अन्नपूर्णा ने सुनाई थी।)
संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला
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