जीवंत भगवान


महर्षि श्रीअरविंद घोष

जो ज्ञान तुझे जीवन में प्राप्त है बस वैसा ही बन और उसी को जीवन में उतार; तभी तेरा ज्ञान होगा तेरे अन्दर विद्यमान जीवंत भगवान।

संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली 


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