श्रेणियाँ श्री माँ के वचन

जगत् के बारे में तीन धारणाएँ

१. बुद्ध और शंकर के मत:

जगत् एक भ्रम है, वह अज्ञान के कारण, अज्ञान और दुःख का क्षेत्र है। करने लायक चीज़ बस यही है कि जितनी जल्दी हो सके इससे निकल कर ‘आदि असत्’ या ‘अव्यक्त’ में विलीन हो जाओ।

२. प्रचलित वेदान्त की धारणा:

जगत् तत्त्वतः भगवान् है क्योंकि ‘भगवान’ सर्वव्यापी हैं। लेकिन उनकी बाहरी अभिव्यक्ति विकृत, अन्धकारमयी, अज्ञानमयी और भ्रष्ट है। एकमात्र करने-लायक चीज़ है, आन्तरिक भगवान् के प्रति सचेतन होना और जगत् के बारे में परेशान हुए बिना उसी चेतना में स्थित रहना; क्योंकि यह बाहरी
जगत् नहीं बदल सकता और हमेशा अपनी इसी स्वाभाविक अचेतना और अज्ञान की अवस्था में रहेगा।

३. श्रीअरविन्द की दृष्टि :

जगत् जैसा कि अभी है, वह भागवत सृष्टि नहीं है जो उसे होना चाहिये, बल्कि उसकी अन्धकारमयी और विकृत अभिव्यक्ति है। वह भागवत चेतना और इच्छा की अभिव्यक्ति नहीं है, लेकिन वह है वही बनने के लिए; इसका सृजन इसीलिए हुआ है कि यह परम प्रभु के सभी रूपों और पहलुओं में—’प्रकाश’, ‘ज्ञान’, ‘शक्ति’, ‘प्रेम’ और ‘सौन्दर्य’ में उनकी पूर्ण अभिव्यक्ति में विकसित हो।

हमारी जगत् के बारे में यही धारणा है। हम इसी लक्ष्य का अनुसरण करते हैं।

संदर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले