स्वर्गीय उदय सिंह नाहर जब आश्रमवासी हुए तब उनकी आयु बहुत कम थी किंतु शीघ्र ही श्रीमाँ ने उन्हें अपने कक्ष की सफ़ाई करने का कार्य दे दिया। उनके इस अप्रत्याशित सौभाग्य से सभी चकित हो गये। एक दिन श्रीमाँ ने पाया कि उदयसिंह ने कमरे की अलमारियों में ताले नहीं लगाये थे।श्रीमाँ ने उदयसिंह को बहुत डाँटा। सौभाग्य से उदयसिंह ने सिर झुकाकर डाँट सुन ली और कोई सफ़ाई देने का प्रयत्न नहीं किया किंतु बाद में एक दिन सुअवसर देखकर उन्होंने श्रीमाँ से पूछा, “माँ, आप ताले बंद करने के विषय में इतनी नियमनिष्ठ क्यों हैं? आपके कमरे में चम्पकलाल, पवित्र, नलिनी सहित इने गिने महान शिष्य ही तो जाते हैं?” श्रीमाँ ने उन्हें समझाया, “अगर हम असावधान हों, और अलमारियों में ताला लगाने आदि की उचित सतर्कता न बरतें तो हम चोरी की आसुरी शक्ति को एक अवसर तथा एक प्रलोभन देते हैं। यह (आसुरी शक्ति) कमरे में काम करने वाले किसी भी व्यक्ति के अन्दर, वह चाहे कितना भी ईमानदार क्यों न हो, प्रवेश कर सकती है। इस प्रकार हमारी छोटी से असावधानी – जो नुक़सान होगा उसके अलावा -एक ईमानदार व्यक्ति को बेईमान बना सकती हैं।
(यह कहानी मुझे स्वर्गीय श्रीपरिचन्द ने सुनाई थीं।)
संदर्भ : श्रीअरविंद एवं श्रीमाँ की दिव्य लीला
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