तुम जो कुछ भी करो वह उपयोगी हो उठता है यदि तुम उसमें सत्य-चेतना की एक चिंगारी रख दो।
तुम जो कर्म करते हो उसकी अपेक्षा तुम्हारे अन्दर जो चेतना है वह बहुत ज्यादा महत्त्वपूर्ण है। और अगर सत्य-चेतना द्वारा किये जायें तो सबसे अधिक निरर्थक दीखनेवाले कर्म भी बहुत सार्थक हो उठते हैं।
संदर्भ : माताजी के वचन (भाग -२)
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