चिंतन


श्रीअरविंद अपने कक्ष में

यदि तू अंत्यन्त घृणित कीट तथा अत्यन्त अधम अपराधी को प्यार नहीं कर सकता तब भला तू यह कैसे विश्वास कर सकता है कि तू ने अपने अन्तर में भगवान को स्वीकार कर लिया है ।

संदर्भ : विचारमाला और सूत्रावली


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