ग्रहणशीलता


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

मां, ग्रहणशीलता किस बात पर निर्भर करती है?

इसका पहला आधार है सच्चाई-व्यक्ति सचमुच ग्रहण करना चाहता है या नहीं-और फिर… हाँ, मेरे विचार में इसके लिए मुख्य वस्तुएं सच्चाई और नम्रता। घमण्ड जितना तुम्हारे हृदय के द्वार बन्द कर देता है ना कोई और वस्तु नहीं करती। जब तुम अपने में सन्तुष्ट रहते हो, तो यह तुम्हारे अन्दर का अहं ही होता है जो तुमें यह मानने ही नहीं देना कि तुम्हारे अन्दर भी कोई कमी है, कि तुम भी ग़लतियां करते हो, कि तुम भी अधूरे हो, अपूर्ण हो, कि तुम…। जानते हो, तुम्हारी प्रकृति में कोई ऐसी चीज़ मौजूद है जो इस प्रकार कठोर पड़ जाती है, जो अपना दोष स्वीकार करना नहीं चाहती-यही चीज़ तुम्हें उच्चतर वस्तु को ग्रहण करने से रोकती है। बहरहाल, इस अनुभव को प्राप्त करने के लिए तुम कोशिश कर सकते हो। यदि तुम संकल्प-शक्ति के बल पर अपनी सत्ता के एक छोटे-से भाग से भी यह कहलवा सको कि “ओह, हाँ, हाँ, यह मेरी भूल थी,  मुझे ऐसा नहीं होना चाहिये था, मुझे ऐसा करना और सोचना नहीं चाहिये था, हाँ, यह मेरा दोष है,” यदि तुम उससे यह स्वीकार करा सको तो शुरू-शुरू में तो, जैसा कि मैंने अभी-अभी कहा, तुम इससे कष्ट होगा, पर यदि तुम इस पर अड़े रहो, जब तक कि वह पूरी तरह स्वीकृत न हो जाये, तो वह भाग तत्काल ही खुल जायेगा-वह खुल जायेगा और
प्रकाश का पुञ्ज उसके अन्दर प्रवेश कर जायेगा, और तब तुम बाद में इतने प्रसन्न और आनन्दित हो उठोगे कि तुम अपने से पूछोगे : “आखिर क्यों, मैं इतने समय तक इसका प्रतिरोध कर रहा था? कैसा मूर्ख था मैं !”

संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५४


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