यहाँ (श्रीअरविंद आश्रम) गृहस्थ तथा सन्यासी के बीच भेद करने का कोई प्रश्न ही नहीं उठता, क्योंकि हमारे लिए वह भेद अस्तित्व ही नहीं रखता। कम-से-कम यहाँ सामान्य प्रकार के सन्यासी के लिए कोई स्थान नहीं, क्योंकि हम जीवन को पीठ नहीं दिखाते; न हम गृहस्थ ही हैं, क्योंकि हम अपने साधारण मानव जीवन को, उसकी प्रथाओं और उसके उद्देश्यों को पीछे छोड़ कर यहाँ आये हैं। . . .
यहाँ का सचमुच लाभ उठाने के लिए केवल दो प्रकार के लोग रह सकते हैं ;
१) वे, जो आध्यात्मिक वातावरण को आत्मसात करने और अपने-आपको बदलने के लिए तैयार हैं।
२) वे, जो भले अब तक तैयार नहीं हैं, लेकिन फिर भी, प्रभाव के प्रति निरन्तर आत्म-समर्पण करते हुए स्वयं को धीरे-धीरे तैयार कर सकते और कर रहे हैं।
संदर्भ : श्रीअरविंद (खण्ड -३५)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…