कोई आसक्ति न हो, कोई कामना न हो, कोई आवेग न हो, कोई पसंद न हो; पूर्ण समता हो, अचल शांति हो और भागवत सरंक्षण में अटल श्रद्धा हो ; ये सब हों तो तुम सुरक्षित हो और न हों तो तुम जोखिम में हो। और जब तक तुम सुरक्षित नहीं हो तब तक मुर्गी के उन छोटे बच्चों की तरह रहना ही ठीक है जो अपनी माँ के डेनों के नीचे आश्रय लेते हैं।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९२९-१९३१
यदि तुम्हारें ह्रदय और तुम्हारी आत्मा में आध्यात्मिक परिवर्तन के लिए सच्ची अभीप्सा jहै, तब…
जब शारीरिक अव्यवस्था आये तो तुम्हें डरना नहीं चाहिये, तुम्हें उससे निकल भागना नहीं चाहिये,…
आश्रम में दो तरह के वातावरण हैं, हमारा तथा साधकों का। जब ऐसे व्यक्ति जिनमें…
.... मनुष्य का कर्म एक ऐसी चीज़ है जो कठिनाइयों और परेशानियों से भरी हुई…
अगर श्रद्धा हो , आत्म-समर्पण के लिए दृढ़ और निरन्तर संकल्प हो तो पर्याप्त है।…