श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ
‘भागवत कृपा’ के सामने कौन योग्य है और कौन अयोग्य?
सभी तो उसी एक दिव्य ‘मां’ के बालक हैं।
‘उनका’ प्रेम उन सब पर समान रूप से फैला हुआ है।
लेकिन ‘वे’ हर एक को उसकी प्रकृति और ग्रहणशीलता के अनुसार देती हैं।
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-२)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…