किसी भी साधक को कभी भी अयोग्यता के और निराशाजनक विचारों नहीं पोसना चाहिये-ये एकदम से असंगत होते हैं, क्योंकि व्यक्ति की निजी योग्यता तथा गुण उसे सफल नहीं बनाते बल्कि श्रीमां की कृपा, उनकी शक्ति तथा उस कृपा के प्रति अन्तरात्मा की स्वीकृति तथा मां की परमा शक्ति की उसके अन्दर क्रिया ही साधक को सफल बनाती हैं। अन्धकार-भरे इन सभी विचारों से मुंह मोड़ लो और केवल मां की ओर ताको, परिणाम तथा अपनी इच्छा की सफलता के लिए अधीर मत बनो, बल्कि श्रद्धा और विश्वास के साथ मां को पुकारो, उनकी क्रिया को अपने अन्दर शान्ति लाने दो और प्रार्थना करो कि चैत्य उद्घाटन तथा उपलब्धि के लिए तुम्हारी प्यास कभी न बुझने पाये। यह चीज निस्सन्देह तथा निश्चित रूप से उस पूर्ण श्रद्धा तथा प्रेम को ले आयेगी जिसे तुम खोज रहे हो।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
सबसे पहले हमें सचेतन होना होगा, फिर संयम स्थापित करना होगा और लगातार संयम को…
प्रेम और स्नेह की प्यास मानव आवश्यकता है, परंतु वह तभी शांत हो सकती है…
पत्थर अनिश्चित काल तक शक्तियों को सञ्चित रख सकता है। ऐसे पत्थर हैं जो सम्पर्क की…