विजय आ गयी है, तेरी विजय, हे नाथ, जिसके लिए हम तुझे अनन्त धन्यवाद देते हैं।
लेकिन अब हमारी तीव्र प्रार्थना तेरी ओर उठती है। तेरी शक्ति द्वारा और तेरी शक्ति से ही विजयी लोगों ने विजय पायी है। वर दे कि वे अपनी सफलता में इसे भूल न जायें और उन्होंने तेरे आगे संकट की तीव्र व्यथा के समय जो प्रतिज्ञाएं की हैं उन्हें वे भूल न जायें। उन्होंने युद्ध करने के लिए तेरा नाम लिया है, वर दे कि वे शान्ति स्थापित करते समय तेरी कृपा को भूल न जायें।
१५ अगस्त, १९४५
सन्दर्भ : माताजी के वचन (भाग-३)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…