… यदि तुम एक सामान्य व्यक्ति हो हो और यदि तुम कष्ट उठाओ और पद्धति से परिचित होओ तो, तुम्हारा विकास लगभग असीम होता है ।
ऐसी एक धारणा है कि प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष प्रकार का होता है । उदाहरणार्थ, चीड़ कभी बलूत नहीं बनेगा और ताड़ कभी गेहूं नहीं बनेगा। यह स्पष्ट है। परंतु यह दूसरी बात है : उसका मतलब है कि तुम्हारी सत्ता का सत्य तुम्हारे पड़ोसी की सत्ता का सत्य नहीं है । परंतु अपनी सत्ता के सत्य में, तुम्हारें निजी गठन के अनुसार; तुम्हारी प्रगति की क्षमता लगभग असीम है । यह केवल तुम्हारें इस निजी विश्वास से सीमित है कि वह सीमित है और सच्ची प्रक्रिया के बारें में तुम्हारें अज्ञान से सीमित है, अन्यथा … ।
ऐसी कोई चीज़ नहीं जिसे मनुष्य न कर सकें, बशर्ते कि वह उसे करने की विधि जानता हो ।
संदर्भ : प्रश्न और उत्तर १९५६
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…