किसका भय ?


श्रीअरविंद आश्रम की श्रीमाँ

तुम्हारी निष्ठा और समर्पण सत्यमय और संपूर्ण होने चाहियें। जब तुम अपना अर्पण करते हो तो अपने को दे डालो निःशेष रूप से, बिना किसी दावे के, बिना किसी शर्त के, बिना किसी संकोच के, ताकि तुम्हारे अंदर सब कुछ मां भगवती का होगा और अहं के लिये कुछ भी नहीं छोड़ा जायेगा, अन्य किसी शक्ति को कुछ भी नहीं दिया जायेगा।

तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक संपूर्ण होंगे उतना ही अधिक तुम कृपापात्र और सुरक्षित होओगे। और यदि मां भगवती की कृपा और रक्षक हाथ तुम पर हों तो ऐसा क्‍या है जो तुम्हें स्पर्श कर सके या जिसका तुम्हें भय हो? उसका अल्पांश भी तुम्हें सकल कठिनाइयों, बाधाओं और संकटों के पार कर देगा; उससे पूरे घिरे रहने पर तो, चूंकि वह पथ मां का ही है, तुम अपने पथ पर निरापद चल सकते हो, तब तुम्हें किसी संकट की चिंता नहीं, तुम्हें कोई भी वैरता छू नहीं सकती वह चाहे कितनी ही सबल क्यों न हो, इस जगत्‌ की हो या अदृश्य जगत्‌ की। उसका स्पर्श कठिनाई को सुयोग में, विफलता को सफलता में और दुर्बलता को अडिग बल में बदल दे सकता है। कारण, मां भगवती की अनुकंपा परमेश्वर की अनुमति है और आज या कल उसका फल निश्चित है, पूर्वनिर्दिष्ट, अवश्यंभावी और अनिवार्य है।

सन्दर्भ : माताजी के विषय में 


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