जब भक्त लोग श्रीमाँ के दर्शन को जाते थे तो उनके दिव्य रूप और माधुरी के प्रभाव से सुध-बुध खो बैठते थे। समय कैसे पंख लगा कर उड़ रहा है उन्हें याद ही नहीं रहता था। और जब भी श्रीमाँ अपने कोमल हाथों में उनके हाथ पकड़ कर उनको अपलक देखती थीं तो समय जैसे ठहर जाता था ।

एक भक्त बड़े प्रेम और श्रद्धा से श्रीमाँ को अर्पित करने के लिए भेंट के रुपए एक सुंदर लिफाफे में रख कर उस लिफाफे को अपनी जेब में रख लेते थे। किन्तु अक्सर ऐसा होता था कि श्रीमाँ के सामने आते ही वे आनन्द में डूब जाते थे और भेंट देना भूल जाते थे। जब वे वापस जाने के लिए खड़े होते तो श्रीमाँ स्वयं उनकी जेब से लिफाफा निकाल लेती और खिलखिला कर हंस पड़ती।

संदर्भ : श्रीअरविंद और श्रीमाँ की दिव्य लीला 

शेयर कीजिये

नए आलेख

रूपांतर का मार्ग

भगवान के प्रति आज्ञाकारिता में सरलता के साथ सच्चे रहो - यह तुम्हें रूपांतर के…

% दिन पहले

सच्चा ध्यान

सच्चा ध्यान क्या है ? वह भागवत उपस्थिती पर संकल्प के साथ सक्रिय रूप से…

% दिन पहले

भगवान से दूरी ?

स्वयं मुझे यह अनुभव है कि तुम शारीरिक रूप से, अपने हाथों से काम करते…

% दिन पहले

कार्य के प्रति मनोभाव

अधिकतर लोग कार्यों को इसलिये करते हैं कि वे उन्हें करने पड़ते है, इसलिये नहीं…

% दिन पहले

चेतना का परिवर्तन

मधुर माँ, जब श्रीअरविंद चेतना के परिवर्तन की बात करते हैं तो उनका अर्थ क्या…

% दिन पहले

जीवन उत्सव

यदि सचमुच में हम, ठीक से जान सकें जीवन के उत्सव के हर विवरण को,…

% दिन पहले