यदि अच्छी कामनाएँ हैं तो बुरी कामनाएँ भी आयेंगी। संकल्प और अभीप्सा तो साधना के अंग हैं, लेकिन कामना के लिए स्थान नहीं है। अगर साधक में कामना है तो उसमें आसक्ति, मांग की भावना, लालसा, समता का अभाव, इच्छित वस्तु न पाने पर शोक तथा दु:ख अवश्य होंगे, और ये सभी चीज़ें अयौगिक है ।
संदर्भ : श्रीअरविंद के पत्र
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…