कब तक


प्रभु श्रीअरविंद

कब तक तुम इस मन के गोलाकार पथों पर चक्कर खाते रहोगे ?

अपनी क्षुद्र अहम सत्ता और नगण्य वस्तुओं से घिरे रहोगे ?

संदर्भ : सावित्री 


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