मेरी नन्ही ‘शाश्वत मुस्कान’,
मुस्कराती जाओ और विशेष रूप से जब कठिनाइयाँ आयें तो और भी अधिक मुस्कुराओ। मुस्कानें सूर्य की किरणों की तरह हैं, वे बादलों को छितरा देती हैं … और अगर तुम आमूल उपचार चाहती हो तो यह रहा : स्पष्टवादिता, पूरी तरह स्पष्टवादी बनो, मुझे पूरी तरह बतलाओ कि तुम्हारें अंदर क्या चल रहा है और जल्दी ही उपचार आ जायेगा, एक सम्पूर्ण और सुखकर उपचार।
मेरे नन्ही मुस्कान को बहुत से स्नेह के साथ ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
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