मेरी नन्ही ‘शाश्वत मुस्कान’,
मुस्कराती जाओ और विशेष रूप से जब कठिनाइयाँ आयें तो और भी अधिक मुस्कुराओ। मुस्कानें सूर्य की किरणों की तरह हैं, वे बादलों को छितरा देती हैं … और अगर तुम आमूल उपचार चाहती हो तो यह रहा : स्पष्टवादिता, पूरी तरह स्पष्टवादी बनो, मुझे पूरी तरह बतलाओ कि तुम्हारें अंदर क्या चल रहा है और जल्दी ही उपचार आ जायेगा, एक सम्पूर्ण और सुखकर उपचार।
मेरे नन्ही मुस्कान को बहुत से स्नेह के साथ ।
संदर्भ : श्रीमातृवाणी (खण्ड-१६)
तुम्हारी श्रद्धा, निष्ठा और समर्पण जितने अधिक पूर्ण होंगे, भगवती मां की कृपा और रक्षा भी…
भगवान् ही अधिपति और प्रभु हैं-आत्म-सत्ता निष्क्रिय है, यह सर्वदा शान्त साक्षी बनी रहती है…
अगर चेतना के विकास को जीवन का मुख्य उद्देश्य मान लिया जाये तो बहुत-सी कठिनाइयों…
दुश्मन को खदेड़ने का सबसे अच्छा तरीक़ा है उसके मुँह पर हँसना! तुम उसके साथ…
आलोचना की आदत-अधिकांशतः अनजाने में की गयी दूसरों की आलोचना-सभी तरह की कल्पनाओं, अनुमानों, अतिशयोक्तियों,…